Thursday 16 June 2016

मेरी खामोशियों पर, दुनिया मुझ को ताना देती है

वो क्या जाने कि चुप रहकर भी की जाती हैं तकरीरें

- ज़ज्बी

मेरी खामोशियाँ देंगीं जवाब रोजे महशर को

तेरी गवाहियों का भरोसा थोड़े ही है।
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-तू रूठी रूठी सी लगती है कोई तरकीब बता मनाने की , 
मैं ज़िन्दगी गिरवी रख दूंगा ; तू क़ीमत बता मुस्कुराने की.
-सत्यपाल अरोरा की फ़ेसबबुक वाल से 

बडी अजीब सी मुलाकात
होती थी हमारी,
वो मतलब से मिलते थे
हमें मिलने से मतलब था..!!
अशोक निर्दोष  की फ़ेसबबुक वाल से 

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