Tuesday 24 May 2016

वो मेरे चेहरे तक अपनी नफरतें लाया तो था


मैंने उसके हाथ चूमे और बेबस कर दिया


-मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है

ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते

- वसीम बरेलवी

-रविंद्र श्रीवास्तव की फेसबुक वॉल  से

Sunday 22 May 2016

अजीब तमाशा है मिट्टी के बने लोगों का, 

बेवफाई करो तो रोते है,वफा करो तो रूलाते है।

राजनारायन कोशिक की फेसबुक  वाल से 

Tuesday 17 May 2016

जो प्यासे हो तो अपने साथ रक्खो अपने बादल भी

ये दुनिया है, विरासत में कुंआ कोई नहीं देगा ।


ज़फर गोरखपुरी



 भूखों की भूख मर गई,प्यासे नहीँ रहे


करने को और कोई खुलासे नहीं रहे। 



@अचल


नब्ज कांटी तो खून लाल ही निकला..💉💉


सोचा था सबकी तरह ये भी बदल गया होगा।


नीरज अग्रवाल की फेसबुक वॉल से 

Sunday 15 May 2016

बहाना कोई ना बनाओ तुम मुझसे खफा होने का
, तुम्हें चाहने के अलावा कोई गुनाह नहीं है मेरा!
 राज नारायण कौशिक की फेस बुक बॉल से

Friday 13 May 2016

तुम मेरे हो इसी अहसास ने मरने न दिया ,

 तुम चले जाओगे इस विश्वास ने जीने न दिया| 

एसबी तिवारी की फेस बुक बॉल से
होता नहीं है फैसला सिक्का उछाल के,
ये दिल का मामला है, जरा देख भाल के ।
मोबाइल के दौर के आशिकों को क्या पता,
खत में रख देते थे, दिल निकाल के ।

Thursday 12 May 2016

जाने क्या ढूंढती है मेरी मुस्कराहट तुझ में..!!
जो तू हंसती हैं, ये कम्बखत मेरे होंठो पे आ बैठती।
टींन्कू मंडिरा की फेस बुक वाल से
बहुत देर कर दी तुमने मेरी धड़कने महसूस करने में।
वो दिल नीलाम हो गया जिसपे तुम्हारी हुकूमत थी।।
मीनू गुप्ता की फेसबुक वॉल से

Monday 2 May 2016

अधूरेपन का मसला ज़िंदगी भर हल नहीं होता,

कहीं आँखें नहीं होतीं, कहीं काजल नहीं होता।


कहानी कोई भी अपनी भला पूरी करे कैसे?


किसी का आज खोया है, किसी का कल नहीं होता।


- राजन स्वामी


रविन्द्र श्री वास्तव जी की फेसबुक वाल से 

Sunday 1 May 2016

सात संदूकों में भरकर दफन कर दो नफ़रतें,

आज इंसान को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत...

सुभाष बंसल  की फेसबुक वॉल से
दिल से ज्यादा महफूज़ जगह नहीं दुनिया में,

पर सबसे ज्यादा लोग लापता भी यहीं से होते हैं।

निशांन्त शर्मा की फेसबुक वॉल से
 जब से देना शुरू किया उनके सवालों के जवाब

आँखों में आँखें डालकर बात की,




मांगने लगे अपना हक़.

खेतों में बंद कर दिया हल जोत
ना,


उठने लगीं बंदूकें उनकी

देशभक्त और राष्ट्रद्रोह की खींचतान में

‘सरकार’ के लिए हम नक्सली हो गए।

सुधा उपाध्याय