ll एक पुरानी ग़ज़ल, नये लिबास में ll
तुम सोचते रहते हो, बादल की उड़ानों तक,
और मेरी निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक.
ऐसी भी अदालत है, जो रूह की सुनती है,
महदूद नहीं रहती, वो सिर्फ़ बयानों तक.
ख़ुशबू-सा जो बिखरा है, सब उसका करिश्मा है,
मंदिर के तरन्नुम से, मस्जिद की अज़ानों तक.
टूटे हुए ख़्वाबों की, एक लम्बी कहानी है,
शीशे की हवेली से, पत्थर के मकानों तक.
दिल आम नहीं करता, एहसास की ख़ुशबू को,
बेकार ही लाए हम, चाहत को ज़ुबानों तक.
हर वक़्त फ़ज़ाओं में, महसूस करोगे तुम,
मैं प्यार की ख़ुशबू हूं, महकूंगा ज़मानों तक.
बालेन्दु शर्मा दधीचि
'किस रावण की बाहें काटूं, किस लंका में आग लगाऊं।
तुम सोचते रहते हो, बादल की उड़ानों तक,
और मेरी निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक.
ऐसी भी अदालत है, जो रूह की सुनती है,
महदूद नहीं रहती, वो सिर्फ़ बयानों तक.
ख़ुशबू-सा जो बिखरा है, सब उसका करिश्मा है,
मंदिर के तरन्नुम से, मस्जिद की अज़ानों तक.
टूटे हुए ख़्वाबों की, एक लम्बी कहानी है,
शीशे की हवेली से, पत्थर के मकानों तक.
दिल आम नहीं करता, एहसास की ख़ुशबू को,
बेकार ही लाए हम, चाहत को ज़ुबानों तक.
हर वक़्त फ़ज़ाओं में, महसूस करोगे तुम,
मैं प्यार की ख़ुशबू हूं, महकूंगा ज़मानों तक.
बालेन्दु शर्मा दधीचि
मुक्तक
चन्द जुगनु सूरज को चिढाने आ गए हैँ
गए हैँ
हैँ |
......अनूप पाण्डेय
शेर
कीमतें गिर गई महोब्बत की . . .
चलो कोई दूसरा कारोबार करे .
पंडित प्रमोद शुक्ला
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