Thursday 22 October 2015

 मुहब्बत को हंसी खेल आज तूने कह दिया नादान, 
खबर है कुछ मुहब्बत की,बड़ी तकलीफ  होती है।
-महेश कुमार मिश्रा
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ना पीछे मुड़कर तुम देखो ना आवाज़ दो मुझ को,
बड़ी मुश्किल से सीखा है सब को अलविदा कहना.
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राह  में निकले थे ये सोचकर कि किसी को बना लेंगे अपना,
मगर इस ख्वाइश ने जिंदगी भर का मुसाफिर बना दिया |
-महेश कुमार मिश्रा
 हमने सोचा था हर मोड़ पर तुम्हारा साथ देंगे,
पर क्या करें कमबख्त सड़क ही सीधी निकली !
devendra deva
जुदा होकर भी मैं नज़दीकियाँ महसूस करता हूँ,
बिछड़ता हूँ तो अपनी ग़लतियाँ महसूस करता हूँ.
अभी भी सूखने से बच गया है क्या कोई दरिया,
बदन में क्यों तड़पती मछलियाँ महसूस करता हूँ.
वक़ालत यूँ तो करता हूँ मैं उड़ते हर परिंदे की,
मगर पांवों में अपने बेड़ियाँ महसूस करता हूँ.
कभी एहसास होता है कि हैं पुरवाइयां मुझमें,
कभी धुआं उगलती चिमनियाँ महसूस करता हूँ.
दिलों की बात मैं जब भी लिखा करता हूँ काग़ज़ पर,
क़लम पर मैं किसी की उंगलियाँ महसूस करता हूँ.
सभी का मेरे अहसासों से रिश्ता है कोई वरना,
सभी की मैं ही क्यों मजबूरियाँ महसूस करता हूँ.
 -अंसार कंबरी  

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