Thursday 22 October 2015

मेरी पसंद

कल रात  मेने  सारे  दुःख कमरे की   दीवारों  से कह डाले ,
अब में सोता    रहता  हूँ  और दीवारें रोती  रहतीं  हें|
पंडित प्रमोद शुक्ला
.................................................

-आँखों  की गली में कोई आवारा सा आंसू .
पलकों की गली से  तेरे घर का पता बूझ रहा हैं
ऍम ऍम खान नियाजी
...........................................................................................
-किसने कहा तुझे कि अनजान बनके आया कर,
मेरे दिल के आइने में महमान बनके आया कर।
पागल इक तुझे ही  तो बक्शी है दिल की हकूमत,
ये तेरी सलतनत है, तू सुलतान बनके आया कर।
-अंजली पंडित
...........................................................

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है
ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए
यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है
एक बूढ़ा आदमी है मुल्क़ में या यों कहो—
इस अँधेरी कोठरी में एक रौशनदान है
मस्लहत—आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम
तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है
इस क़दर पाबन्दी—ए—मज़हब कि सदक़े आपके
जब से आज़ादी मिली है मुल्क़ में रमज़ान है
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है
मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है
दुष्यंत कुमार त्यागी

No comments:

Post a Comment